*****शीलादित्य सम्राट हर्षवर्धन एवं उनका युग (४६७ से ८१० ई . तक )*******
पुस्तक का केन्द्रीय विषय सम्राट हर्षवर्धन है । साथ ही ४६७ से ८१० ई. तक के उत्तर भारत के राजवंशो एवं सम्राटो के विषय में ,जिसे वर्तमान में अन्धकार का युग मन जाता है ,तथ्यात्मक सामग्री उपलब्ध कराई गयी है ।
सम्राट हर्ष वीर ,साहसी ,कुशल राजनीतिग्य,मर्यादित महत्वकांक्षी,उदार चरित्र ,धार्मिक ,सामाजिक सहिष्णु ,लोक कल्याण में समर्पित ,कुशल प्रबंधक ,भारतीय संस्कृतिक मूल्यों में दृढ आस्थाशील एवं अद्भुत दानी एक अद्वितीय शाशक हुए है । इस काल में भारतीय व्यवस्था ,आर्थिक सम्रिध्धता ,उच्च नैतिक स्टार ,रास्ट्रीय भावो से ऒतप्रोत संस्कारित राष्ट्र जीवन की झलक के स्पष्टता से दर्शन होते है ।
चक्रवर्ती गुप्त साम्राज्य के पतन ५५० ई . के उपरांत भी मगध में ७०० ई . तक वे उत्तरापथ्नाथ बने रहे । हूणों का उन्मूलन एवं उनका भारतीयकरण करने का श्रेय गुप्त सम्राटो एवं विशेष रूप से सम्राट भानुगुप्त बालादित्य एवं मालवा नरेश कुमार्माटी यशोधर्मा को है ।
परवर्ती गुप्त वंश चक्रवर्ती गुप्त सम्राटो के ही रक्त सम्बन्धी थे । इनका पूर्व पुरुष कृष्णगुप्त का पिता गोविन्द गुप्त चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य का बड़ा पुत्र वैशाली का प्रशाशक था ।
चक्रवर्ती गुप्तो की रिक्तता को हर्ष ने भरा ,हर्ष के पश्चात् की रिक्तता को गुप्त सम्राट आदित्यसेन ने ,उनके पश्चात की रिक्तता को भरा मौखिरी सम्राट यशोवर्मन ने उसके पश्चात कर्कोट नागवंश के सम्राट ललितादित्य मुक्तापिद एवं उनके पोते सम्राट विनयादित्य जयपीड ५५० से ८१० ई. तक निरंतर उत्तरापथ के सम्राट हुए है ।
उक्त सभी विषयो पर तथ्यात्मक सामग्री के साथ तार्किक द्रस्ठी से महत्वपूर्ण सामग्री संकलित की है ।
आज ही आर्डर करे 9414880321
पुस्तक का केन्द्रीय विषय सम्राट हर्षवर्धन है । साथ ही ४६७ से ८१० ई. तक के उत्तर भारत के राजवंशो एवं सम्राटो के विषय में ,जिसे वर्तमान में अन्धकार का युग मन जाता है ,तथ्यात्मक सामग्री उपलब्ध कराई गयी है ।
सम्राट हर्ष वीर ,साहसी ,कुशल राजनीतिग्य,मर्यादित महत्वकांक्षी,उदार चरित्र ,धार्मिक ,सामाजिक सहिष्णु ,लोक कल्याण में समर्पित ,कुशल प्रबंधक ,भारतीय संस्कृतिक मूल्यों में दृढ आस्थाशील एवं अद्भुत दानी एक अद्वितीय शाशक हुए है । इस काल में भारतीय व्यवस्था ,आर्थिक सम्रिध्धता ,उच्च नैतिक स्टार ,रास्ट्रीय भावो से ऒतप्रोत संस्कारित राष्ट्र जीवन की झलक के स्पष्टता से दर्शन होते है ।
चक्रवर्ती गुप्त साम्राज्य के पतन ५५० ई . के उपरांत भी मगध में ७०० ई . तक वे उत्तरापथ्नाथ बने रहे । हूणों का उन्मूलन एवं उनका भारतीयकरण करने का श्रेय गुप्त सम्राटो एवं विशेष रूप से सम्राट भानुगुप्त बालादित्य एवं मालवा नरेश कुमार्माटी यशोधर्मा को है ।
परवर्ती गुप्त वंश चक्रवर्ती गुप्त सम्राटो के ही रक्त सम्बन्धी थे । इनका पूर्व पुरुष कृष्णगुप्त का पिता गोविन्द गुप्त चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य का बड़ा पुत्र वैशाली का प्रशाशक था ।
चक्रवर्ती गुप्तो की रिक्तता को हर्ष ने भरा ,हर्ष के पश्चात् की रिक्तता को गुप्त सम्राट आदित्यसेन ने ,उनके पश्चात की रिक्तता को भरा मौखिरी सम्राट यशोवर्मन ने उसके पश्चात कर्कोट नागवंश के सम्राट ललितादित्य मुक्तापिद एवं उनके पोते सम्राट विनयादित्य जयपीड ५५० से ८१० ई. तक निरंतर उत्तरापथ के सम्राट हुए है ।
उक्त सभी विषयो पर तथ्यात्मक सामग्री के साथ तार्किक द्रस्ठी से महत्वपूर्ण सामग्री संकलित की है ।
आज ही आर्डर करे 9414880321
https://www.facebook.com/PracinaDuniya
ReplyDeleteread preface
ReplyDelete